अनुसंधान की विधियां (Methods Of Research)

  1. ऐतिहासिक अनुसंधान (Historical Research)

2. वर्णनात्मक अनुसंधान (Descriptive Research)

3. क्रियात्मक अनुसंधान (Action Research)

4. प्रयोगात्मक अनुसंधान (Experimental Research)

5. पूरालक्षी  या पश्चिओमुखी अनुसंधान (Ex post facto Research)

6. अंतर्वस्तु विश्लेषण (Content analysis)

7. अंतर अनुशासनात्मक विधि  (Interdisciplinary Approach)

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1. ऐतिहासिक अनुसंधान Historical Research-

जॉन डब्ल्यू बेस्ट के अनुसार “ऐतिहासिक अनुसंधान का संबंध में ऐतिहासिक समस्याओं के वैज्ञानिक विश्लेषण से है| इसके विभिन्न पद भूत के संबंध में एक नई अवधारणा बताते हैं जिनका संबंध वर्तमान और भविष्य से होता है |”

ऐतिहासिक अनुसंधान का  क्षेत्र- 

  1. बड़े शिक्षा शास्त्र एवं मनोवैज्ञानिक को के विचार ऐतिहासिक अनुसंधान क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं|
  2.  विभिन्न कार्यों में शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक विचारों के विकास की स्थिति|
  3.  शिक्षा के लिए संवैधानिक व्यवस्था ऐतिहासिक अनुसंधान का एक क्षेत्र है 
  4. एक विशेष प्रकार की विचारधारा का प्रभाव और उसके स्त्रोत|
  5.  संस्थाओं एवं प्रयोगशाला द्वारा किए गए कार्य| 

ऐतिहासिक अनुसंधान अनुसंधान के मूल्य उद्देश्य इस प्रकार है –

  1.  ऐतिहासिक अनुसंधान का मूल उद्देश्य भूत के आधार पर वर्तमान को समझना एवं भविष्य के लिए सतर्क होना है|
  2. शिक्षा मनोविज्ञान अथवा अन्य सामाजिक विज्ञान में चिंतन को नई दिशा देने एवं नीति निर्धारण में सहायता करना है|
  3. किसी क्षेत्र विशेष के व्यावसायिक कार्यकर्ताओं के लिए पूर्व अनुभव के आधार पर भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा निर्धारित करने में सहायता करना है|
  4. किन परिस्थितियों में किन कारणों से व्यक्ति अथवा व्यक्तियों ने एक विशेष प्रकार का व्यवहार किया है उसका प्रभाव समाज या व्यक्ति विशेष पर क्या पड़ा है|
  5.  वर्तमान में सिद्धांत तथा क्रियाएं व्यवहार में है उसका उद्भव एवं विकास तथा परिस्थितियों का विश्लेषण| 

ऐतिहासिक अनुसंधान का  महत्व – 

  1. शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक अनुसंधान समाज एवं विद्यालय के संबंधों की व्याख्या करता है तथा मनोवैज्ञानिक क्षेत्र में इसके कारणों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है|
  2. ऐतिहासिक अनुसंधान भूतकाल इन त्रुटियों से परिचित करा कर भविष्य के प्रति सतर्क करता है| 
  3. ऐतिहासिक अनुसंधान वर्तमान शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल ढूंढने में सहायक होता है 
  4. ऐतिहासिक अनुसंधान शिक्षा तथा मनोविज्ञान के क्षेत्र में सिद्धांत एवं क्रिया पक्ष की आलोचनात्मक व्याख्या करता हुआ उनके वर्तमान स्वरूप की ऐतिहासिक एवं विकासात्मक स्थिति को स्पष्ट करता है |

2. वर्णनात्मक अनुसंधान (Descriptive Research)

 यहां अनुसंधान वर्तमान में चल रही स्थितियों का वर्णन एवं विश्लेषण करता है| मन में चल रही अभ्यास, विश्वास, विचारधारा अथवा अभिवृत्ति का अनुभव जो प्राप्त किए जा रहे हैं अथवा नई दिशाएं जो विकसित हो रही हैं उसी से इसका संबंध है |

वर्णनात्मक अनुसंधान की विशेषताएं

  1.  वर्णनात्मक अनुसंधान विशेष सरल एवं अत्यंत कठिन दोनों प्रकार का हो सकता है|
  2.  इसके अंतर्गत स्पष्ट परिभाषित समस्या पर कार्य करते हैं|
  3.  इसके अंतर्गत एक ही समय में अधिकांश मनुष्यों के विषय में आंकड़े प्राप्त किए जाते हैं|
  4.  इसके अंतर्गत किसी वैज्ञानिक नियम का निर्धारण नहीं करते अपितु समस्या के समाधान हेतु उपयोगी सूचना प्रदान करते हैं|
  5.  इसकी प्रकृति cross-sectional है| यह क्या है यह स्पष्ट करता है|
  6.  वर्णन शाब्दिक भी हो सकता है तथा इसके अंतर्गत गणितीय सूत्रों द्वारा भी इसे व्यक्त किया जा सकता है
  7.  वर्णनात्मक अनुसंधान गुणात्मक और  संख्यात्मक दोनों ही प्रकार का हो सकता है 
  8. इसमें आंकड़ों की व्याख्या एवं विश्लेषण में सावधानी रखते हैं |
  9. के लिए विशिष्ट एवं कल्पना पूर्ण नियोजन आवश्यक है |

वर्णनात्मक अनुसंधान के विभिन्न पद –

  1.   अनुसंधान समस्या का कथन
  2.  समस्या संरक्षण अनुसंधान के उपयुक्त है या नहीं या निश्चित करना
  3.  सर्वेक्षण विधि का चुनाव
  4.  सर्वेक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण 
  5. आंकड़े प्राप्त करने के उपकरण उपलब्ध है या नहीं यह निश्चित करना
  6.  प्रस्तावित सर्वेक्षण की सफलता का पूर्वानुमान
  7.  प्रतिनिधि कारी न्याय दर्शन के प्राप्त होने का निश्चय
  8.  अनुसंधान के लिए न्याय दर्शन का चुनाव
  9.  सर्वेक्षण की सफलता का पूर्वानुमान
  10.  आंकड़े प्राप्त करने का अभिकल्प
  11.  आंकड़ों का संग्रह
  12.  आंकड़ों का विश्लेषण
  13.  प्रतिवेदन तैयार करना 

3. क्रियात्मक अनुसंधान (Action Research)

कोरे के अनुसार-” क्रियात्मक अनुसंधान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यवहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक विधि से अपनी समस्याओं का अध्ययन, अपने निर्णय और क्रियाओं में निर्देशन,  सुधार और मूल्यांकन करते है|

  • क्रियात्मक अनुसंधान का उद्देश्य शिक्षा, समाज सुधार, व्यवसाय अथवा औद्योगिक क्षेत्र के कार्यकर्ताओं द्वारा स्वयं अपनी समस्याओं का अध्ययन एवं वैज्ञानिक विधि से उनका समाधान करना है|
  •  इस क्रिया के द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर वे वर्तमान क्रिया में सुधार करते हैं तथा भावी योजनाएं भी बनाते हैं|
  •  इस अनुसंधान को प्रकाश में लाने का श्रेय टीचर्स कॉलेज कोलंबिया विश्वविद्यालय के  होरे. समन. लिंकन तथा इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्कूल एक्सपेरिमेंटेशन के प्रोफेसर स्टीफन एम कोरे को प्राप्त है |

4. प्रयोगात्मक अनुसंधान (Experimental Research)

अनुसंधान की इस विधि में हम किसी सूक्ष्म समस्या का सुक्ष्म समाधान प्रस्तुत करते हैं| प्रयोगात्मक विधि अर्थ तथा उपयोगिता की दृष्टि से अत्यंत व्यावहारिक है क्योंकि इसमें अध्ययन अनियंत्रित परिस्थितियों में किया जाता है|

बे ब्रिज के अनुसार “ प्रयोग में बहुधा किसी घटना को ज्ञात दशाओं में कराया जाता है और  बाहरी प्रभावों को यथासंभव दूर करते हुए निरीक्षण किया जाता है जिसमें प्रपंच के संबंध को भली प्रकार प्रदर्शित किया जाता है|” 

 चैंपियन के अनुसार,” नियंत्रित दशाओं में किए गए निरीक्षण में प्रयोगात्मक अनुसंधान है|”  इनके अनुसार प्रयोग में नियंत्रण आवश्यक है यह नियंत्रण कभी अध्ययन के मामलों द्वारा तथा कभी चल राशियों के  घटाने अथवा बढ़ाने से प्राप्त हो जाता है| 

प्रयोगात्मक विधि के मुख्य लक्षण

  1. यह विधि  एक चर की धारणा पर आधारित है|
  2. जहां भी चलो पर नियंत्रण संभव है इस विधि को सफलतापूर्वक प्रयोग में लाया जा सकता है यह सभी विज्ञानों में प्रयुक्त की जाती है|
  3. मानव परिस्थितियों में सभी संबंधित चारों पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं इस कारण सभी समस्याओं का प्रयोगात्मक अध्ययन भी नहीं किया जा सकता है| 
  4. मूलभूत तथा प्रयोगात्मक अथवा क्रियात्मक अनुसंधान सभी में प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग कर सकते हैं| 
  5. प्रयोगात्मक विधि व्यवहार के आणविक तत्वों का अध्ययन करती है |

प्रयोगात्मक विधि के विभिन्न पद

  1.  समस्या से संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण
  2.  समस्या का चयन एवं परिभाषा करण
  3.  परिकल्पना का निर्माण विशिष्ट शब्दावली तथा चारों की व्याख्या
  4.  प्रयोगात्मक योजना का निर्माण
  5.  प्रयोग करना
  6.  आंकड़ों का संकलन एवं सारणी बनाना
  7.  प्राप्त निष्कर्ष का मापन
  8.  प्राप्त निष्कर्ष का विश्लेषण एवं व्याख्या
  9.  विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष निकालना
  10.  फल अथवा निष्कर्ष की रिपोर्ट तैयार करना

5. पूरालक्षी  या पश्चिओमुखी अनुसंधान (Ex post facto Research)

कुछ प्रयोग इस प्रकार अकल्पित किए जाते हैं जिनमें आश्रित परिवर्ती के माध्यम से स्वतंत्र परिवर्तन का अध्ययन किया जा सके ऐसे प्रयोगों को पूरा लक्ष्य अथवा पश्चिम मुखी कहते हैं |

“यहां एक ऐसे प्रकार का अनुसंधान है जिससे स्वतंत्र चर अथवा चोरों का कार्य हो चुका है तथा अनुसंधानकर्ता किसी आश्रित चर अथवा चोरों का निरीक्षण से कार्य आरंभ करता है वह स्वतंत्र चर का पश्चावलोकन करता है ताकि आश्रित जोरों पर पड़ने वाले प्रभावों तथा उनके संबंधों को वहां ज्ञात कर सके| “

आदर्श रूप से  सामाजिक वैज्ञानिक अनुसंधान में न्याय दर्शन के सदस्यों को यादृच्छिक रूप में चुनने तथा इन सदस्यों को या यादृच्छिक रूप में समूहों में विभक्त करने आदि की सदैव संभावना रहती है किंतु वास्तविक अनुसंधान में इन सभी संभावनाओं को पूर्ण करना कठिन होता है| पश्चिम मुखी तथा प्रयोगात्मक अनुसंधान में न्याय दर्शकों यादृच्छिक रूप में चयन करना संभव होता है |

पूरालक्षी  या पश्चिओमुखी अनुसंधान  महत्व – 

 पश्चिम मुखी अनुसंधान मनोविज्ञान शिक्षा तथा समाज शास्त्र के अनुसार दानों के लिए आवश्यक है| शिक्षा, समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान की अधिकांश समस्याओं का प्रयोगात्मक रूप से अध्ययन नहीं किया जा सकता| बुद्धि पारिवारिक वातावरण शिक्षा के प्रभाव स्कूल का वातावरण आदि संबंधी अध्ययन स्पष्ट रूप से हंसता दी प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं है। 

6. अंतर्वस्तु विश्लेषण (Content analysis)

  1. वस्तु विश्लेषण द्वारा अनुसंधान की गुणात्मक सामग्री को वैज्ञानिक तथ्यों में इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि सांख्यिकी उपयोग किया जा सके और किसी वैज्ञानिक निष्कर्षों तक पहुंचा जा सके। इस प्रकार एक क्रिया के द्वारा सामग्री के जटिल एवं स्पष्ट स्वरूप को सुविधाजनक एवं बोद्ध गम में बनाया जाता है।
  2.  यह एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा सामूहिक संचार साधनों ( टेलीविजन रेडियो समाचार पत्र व्याख्यान प्रतिवेदन आदि) की अंतर्वस्तु का विश्लेषण सुचारू रूप से किया जाता है यद्यपि इस विधि को एक विशेष नाम दे दिया गया है किंतु यह गुणात्मक सामग्री के वर्गीकरण की श्रेणी में आती है।
  3.  इसका मूल उद्धव सामूहिक संचार साधनों के विश्लेषण से ही हुआ है किंतु इसका उपयोग प्राचीन काल से ही समालोचक इतिहासकार आदि अपने क्षेत्र की सामग्री के विश्लेषण में करते रहे हैं 
  4. अब इसका उपयोग क्षेत्रों में भी प्रचुरता से होने लगा है-
  •  व्यक्तिगत अभिलेखों का विश्लेषण
  •  असंचारित साक्षात्कार का विश्लेषण
  •  प्रक्षेपी परीक्षणों के उत्तरों का विश्लेषण
  •  रोगियों के निदानात्मक अभिलेखों का विश्लेषण

 बेरेंसन के अनुसार,” अंतर्वस्तु विश्लेषण अर्धविराम अनुसंधान की एक ऐसी विधि है, जिसके अंतर्गत प्रत्यक्ष संचार की अंतर्वस्तु का वर्णन वास्तुनिष्ठ , नियोजित एवं संख्यात्मक रूप में करते हैं।”

अंतर अनुशासनात्मक विधि  (Interdisciplinary Approach)

इस विधि में अनुशासन शब्द का प्रयोग एक ऐसे विषय के लिए किया गया है जो वैज्ञानिक, वैज्ञानिक अनुसंधान की विधियों के अनुरूप है, वैज्ञानिक निष्कर्षों पर आधारित जिसकी व्यक्तिगत विशेषताएं हैं उसे अनुशासन कहते हैं जब हम किसी से पूछते हैं कि आप का संबंध किस अनुशासन से हैं तो वह उत्तर देता है मनोविज्ञान समाजशास्त्र शिक्षाशास्त्र रूप से है यह नवीन शब्द अमेरिका की देन है|

संदर्भ में अंतर-अनुशासन से तात्पर्य अनेक विषयों के ऐसे समूह से है जो परस्पर  संबद्ध अथवा जिनका समान लक्ष्य है। अंतर  अनुशासनात्मक विधि से तात्पर्य यह है कि प्रत्येक विषय को एक पूर्ण स्वतंत्र इकाई रूप में अलग अलग ना लेकर अनेक विषयों जिनका एक ही लक्ष्य है उन्हें एक समूह में रखा जाए जिससे छात्रों को अधिक से अधिक लाभ हो और एक समन्वित ज्ञान का विकास हो। 

इसी धारणा के फल स्वरुप मानव शास्त्र सामाजिक विज्ञान तथा व्यावहारिक विज्ञान आदि के अनुशासन का विकास हुआ है। 

यह अनुसंधान एक अकर्मक क्रिया है। प्रत्येक प्रकार के अनुसंधान को कुछ विशिष्ट पदों में अथवा क्रमानुसार किया जाता है। यह क्रियाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई होती है परंतु इन क्रियाओं का क्रम कभी-कभी बिगड़ भी जाता है।

डेविड j-fox ने अनुसंधान के कुछ पद बताए हैं जो निम्नानुसार हैं –

  1. प्रारंभिक विचार तथा समस्याओं की पहचान करना
  2.  साहित्य का प्रारंभिक सर्वेक्षण
  3.  विशिष्ट अनुसंधान की समस्या का निश्चय
  4.  अनुसंधान कार्य की सफलता का पूर्वानुमान
  5.  संबंधित साहित्य का द्वितीय सर्वेक्षण
  6.  अनुसंधान की प्रक्रिया का चयन
  7.  अनुसंधान की परिकल्पना का निर्माण
  8.  आंकड़े प्राप्त करने की विधियों का निश्चय
  9. आंकड़े प्राप्त करने के लिए उपकरणों का चुनाव तथा निर्माण
  10. आंकड़ों के विश्लेषण की योजना तैयार करना
  11.  आंकड़ों को एकत्र करने के लिए योजना बनाना
  12.  संख्या तथा न्याय दर्शन का नशा करना
  13.  एक छोटे समूह पर अध्ययन कर कठिनाइयों का ज्ञान प्राप्त करना
  14.  आंकड़ों का संग्रह करना
  15.  आंकड़ों का विश्लेषण करना
  16.  अनुसंधान का प्रतिवेदन तैयार करना
  17.  प्राप्त निष्कर्षों का प्रचार तथा क्रियान्वित करने पर बल देना 

 

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