Research Paper (शोध प्रपत्र)

Workshop (कार्यशाला)

Seminar (संगोष्ठी)

Conference (सम्मेलन)

Symposium (परिसंवाद)

शोध प्रपत्र (Research Paper) –

  • एक उत्तम प्रकार का शोध प्रपत्र लिखना आलोचनात्मक अर्धविराम सृजनात्मक तथा चिंतन स्तर का कार्य है। शोध प्रपत्र में एक विशिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण करना होता है जिससे समुचित क्रम को अपनाया जाता है जिससे शोधकर्ता की शक्ति एवं समय का अपव्यय नहीं होता है।
  • शोध प्रपत्र ओं के लेखन में सामान्यतः दो प्रकार के स्त्रोतों का उपयोग होता है प्राथमिक स्त्रोत तथा गुण स्त्रोत। इन स्त्रोतों के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है।

शोध प्रपत्र का प्रारूप

शोध प्रपत्र लिखने का कोई निश्चित प्रारूप नहीं होता है। प्रत्येक शोधकर्ता अपने ढंग से प्रपत्र को लिखता है वह प्रपत्र का निजी प्रारूप तैयार करता है। शोध प्रपत्र ओं के अवलोकन तथा अनुभवों के आधार पर एक व्यापक रूपरेखा विकसित की जा सकती है। एक उत्तम प्रकार की रूपरेखा शोध पत्र के प्रारूप को तैयार करने में सहायक होती है। प्रपत्र लिखने में एक दिशा तथा प्रवाह के लिए उपयोग होती है। शोध प्रपत्र तैयार करने से पूर्व मुख्य बिंदुओं की एक सूची तैयार कर लेनी चाहिए और उन बिंदुओं का स्तर तथा क्रम निर्धारित कर लेना चाहिए।

किसी भी शोध प्रपत्र के प्रारूप में 4 मुख्य बिंदु होते हैं

  1. प्रस्तावना
  2. विषय वस्तु, मुख्य अंग तथा 
  3. शोध के प्रमुख निष्कर्ष
  4. संदर्भ सूची

 

  1. प्रस्तावना में शोध की समस्या की स्पष्ट रूप से भाषा दी जाती है। शोध का प्रमुख आश्रय प्रस्तुत किया जाता है और उसके महत्व का संक्षिप्त उल्लेख भी किया जाता है।
  2. विषय वस्तु विषय वस्तु का मुख्य अंग शुद्ध प्रबंधन से है। प्रपत्र में शोध क्रियाओं का संश्लेषण किया जाता है जिससे पाठक शोध निष्कर्षों की ओर अग्रसर होता है। शोध प्रपत्र का रूप रचनात्मक और आलोचनात्मक होना चाहिए। प्रपत्र में रचनात्मक पक्ष में शोध की प्रमुख क्रियाओं को क्रमशः प्रस्तुत किया जाता है आलोचना आत्मक पक्ष में शोध के कार्यों एवं निष्कर्षों का विवेचन आलोचनात्मक ढंग से किया जाता है और शोध के महत्व का भी उल्लेख करते हैं।
  3. शोध निष्कर्ष शोधकर्ता को अपने प्रमुख निष्कर्षों को कथनों के रूप में प्रस्तुत करना होता है। निष्कर्षों के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क भी देना चाहिए। अन्य शोध के निष्कर्षों की सहायता से इसकी संस्तुति भी की जानी चाहिए। यदि निष्कर्षों की उपयोगिता किसी क्षेत्र में हो सकती है तो उसका भी उल्लेख करना चाहिए।
  4. संदर्भ सूची शोध पत्र के अंत में संदर्भ सूची अवश्य देनी चाहिए इससे शोधकर्ता के कार्य की वैधता बढ़ते हैं और शोध कार्य के अध्ययन एवं जानकारी का भी बहुत होता है। शोध प्रपत्र वर्तमान और भूतकाल में लिखा जा सकता है।

शोध प्रपत्र के लाभ

  • शोधकर्ताओं को अपने शोध सर्वेक्षण तथा समीक्षा में प्रपत्र उसे अधिक सुगमता हो जाती है।
  • शोधपत्र से शोधकर्ताओं को विभिन्न शोध कार्यों के संबंध में जानने में समय धन तथा शक्ति का अपव्यय नहीं करना होता है।
  • शोधकर्ताओं का नवीन ज्ञान तथा शोध कार्य के संबंध में जानकारी होती है।
  • शोधकर्ताओं को अपने शोध कार्य पर प्रपत्र लिखने के लिए अनुभव होता है तथा आधार भी मिलता है
  • अन्य शोधकर्ता समान कार्य की पुनरावृत्ति से बचते हैं किसी विशिष्ट शोध के क्षेत्र में किस प्रकार के शोध कार्य किए जा रहे हैं या हो चुके हैं उनके संकलन में सहायता मिलती है

कार्यशाला (Workshop) –

कार्यशाला एक निश्चित विषय पर चर्चा का प्रायोगिक कार्य होता है।जिसमें समूह के सदस्य अपने ज्ञान एवं अनुभव के आदान-प्रदान द्वारा विषय के बारे में सीखते हैं। कार्यशाला में प्रायोगिक कार्य और ज्ञान को अधिक महत्व दिया जाता है।

कार्यशाला के उद्देश्य

  • कार्यशाला में विभिन्न संबंधित समस्याओं का समाधान निकाला जाता है 
  • कार्यशाला में विभिन्न उद्देश्य एवं विधियों का सामूहिक रूप से निर्धारण किया जाता है।
  • किसी प्रकरण संबंधी स्पष्टीकरण करने तथा उसके व्यवहारिक पक्ष में महत्व को समझना कार्यशाला के अंतर्गत किया जाता है।
  • व्यक्तिगत रूप से भाग लेने तथा कार्य करने की योग्यताओं का विकास करना भी कार्यशाला का उद्देश्य है।

कार्यशाला की प्रक्रिया

कार्यशाला साधारण तथा 3 से 10 दिन तक रखी जाते हैं कार्यशाला की तीन अवस्थाएं होती जो कि इस प्रकार है – 

  • प्रथम अवस्था इस अवस्था में प्रकरण से संबंधित प्रस्तुतीकरण एवं स्पष्टीकरण होता है।
  • द्वितीय अवस्था यह अवस्था 3 दिन से 1 सप्ताह तक चलती है समस्त प्रशिक्षणार्थियों को अपने-अपने कार्य निर्धारण की स्वतंत्रता दी जाती है कार्य करने के बाद अपने-अपने समूह में सुधार का प्रयास किया जाता है इस अवस्था के अंतिम चरण में सभी समूह एक साथ मिलते हैं और अपने कार्यों की आख्या प्रस्तुत करके रिपोर्ट तैयार करते हैं।
  • तृतीय अवस्था तृतीय अवस्था अनौपचारिक होती है इसमें सभी प्रशिक्षणार्थी अपने अपने कार्य क्षेत्रों में जाकर कार्य प्रणाली में सुधार करते हैं। इस अवस्था को अनुकरण अवस्था भी कहते हैं। इस अवस्था के अंत में कार्य का समापन होता है और विभिन्न प्रयोगों की व्यावहारिकता की आख्या प्रस्तुत की जाती है।

संगोष्ठी (Seminar) –

संगोष्ठी एक छोटे स्तर का सम्मेलन है या एक सभा होती है जिसमें सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ परिचर्चा की जाती है। संगोष्ठी अधिक सीमित एवं औपचारिक प्रकृति के होती है जबकि सम्मेलन अधिक व्यस्तता एवं अनौपचारिक प्रकृति का होता है। संगोष्ठी में परिचर्चा सीमित समय में अधिक गंभीर विषयों पर होते हैं। प्रत्येक सदस्य को संगोष्ठी में विचार रखने पड़ते हैं। तत्पश्चात उस पर परिचर्चा शुरू होती है।

किसी भी तरह की संगोष्ठी के चार स्तर होते हैं जो कि इस प्रकार है

  1. लघु विचार संगोष्ठी
  2. मुख्य विचार गोष्ठी
  3. राष्ट्रीय विचार गोष्ठी
  4. अंतर्राष्ट्रीय विचार गोष्ठी

संगोष्ठी के उद्देश्य

  • संगोष्ठी का उद्देश्य विश्लेषण एवं आलोचना आत्मक क्षमताओं का विकास करना है।
  • निरीक्षण एवं अनुभवों के प्रस्तुतीकरण की क्षमता का विकास करना
  • विरोधी विचार तथा दृष्टिकोण ओं की सहनशीलता का विकास करना
  • विचारों में स्वच्छता तथा सहयोग की भावना का विकास करना
  • दूसरों की भावनाओं के प्रति सम्मान की भावना विकसित करना

संगोष्ठी की प्रक्रिया

  • संगोष्ठी के लिए सर्वप्रथम प्रकरण का चयन किया जाता है पूर्ण विवरण विभिन्न संस्थाओं से प्रकरण से संबंधित व्यक्तियों को आमंत्रित किया जाता है तथा उनके व्यय की जिम्मेदारी ली जाती है। संगोष्ठी का प्रकरण पूर्व नियोजित होता है। संगोष्ठी के कार्य संचालन के लिए भागीदार में से ही अध्यक्ष का चयन किया जाता है।
  • संचालन प्रक्रिया अध्यक्ष निर्धारित करता है। व्यक्ति जो प्रकरण प्रपत्र तैयार करता है उसे वक्ता कहते हैं। प्रवक्ता प्रकरण को गहनता से तैयार करके प्रस्तुत करता है तथा उसकी प्रमुख विशेषताओं को पहले ही बता देता है। जिससे संप्रेषण और विषय वस्तु के स्वरूप को समझने में सहायता मिलती
  • संगोष्ठी का अध्यक्ष या निर्धारित करता है कि परिचर्चा प्रत्येक व्यक्ति के प्रस्तुतीकरण के अंत में अथवा सभी वक्ताओं द्वारा प्रकरण प्रस्तुत करने के उपरांत की जाती है। प्रकरण प्रस्तुत करने के पश्चात अध्यक्ष वाद विवाद का अवसर प्रदान करता है वाद विवाद के समापन पर अध्यक्ष अपने विचार प्रस्तुत करता है।

सम्मेलन (Conference) –

  • सम्मेलन समूह के व्यक्तियों के ज्ञान अनुभव विचार भावना एवं राय को एक सामान्य उद्देश्य के लिए सलाह मशवरा एवं परिचर्चा करने को कहते हैं।
  • यह एक प्रकार की सभा होती है जहां सदस्य अपने ज्ञान का संग्रहण करते हैं प्रस्तुत विषय से संबंधित सूचनाओं पर अपने विचारों एवं दृष्टिकोणओं का आदान प्रदान करते है।
  • सम्मेलन में सदस्य अपनी व्यक्तिगत एवं सामूहिक समस्याओं पर विचार विमर्श करते हैं। समिति सभा की तुलना में सम्मेलन सभा कम औपचारिक होती है। 
  • समूह को सम्मेलन का उद्देश्य निर्धारित करना होता है समूह नेता को सम्मेलन की कार्यप्रणाली को स्पष्ट करना होता है उसे प्रश्नों को तैयार करना पड़ता है तथा परिचर्चा को निर्देशित एवं नियंत्रित करना होता है।

सम्मेलन का आयोजन

सम्मेलन की कारवाही निम्न पदों में विभक्त होती है

  • प्रारंभ सभा अध्यक्ष सभा का विषय समस्या उद्देश्य आदि के विषय में बताता है तथा इस सम्मेलन की पृष्ठभूमि को भी स्पष्ट करता है इसके पश्चात परिचर्चा शुरू होती है।
  • परिचर्चा प्रश्न परिचर्चा का प्रमुख प्रावधान है प्रथम प्रश्न पूरे समूह के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है कोई भी सदस्य इसका उत्तर दे सकता है किंतु उत्तर हां या नहीं में नहीं होना चाहिए। जन समूह के सदस्य उत्तर देना प्रारंभ करते हैं तब परिचर्चा की कार्यवाही शुरू हो जाती है। सभा अध्यक्ष उन व्यक्तियों से प्रत्यक्ष प्रश्न पूछता है जो उत्तर देने में संकोच करते हैं। यदि परीक्षा समाप्त होती हुई प्रतीत होती है तो सभा अध्यक्ष बना प्रश्न पोस्ट प्रस्तुत कर के सदस्यों को अधिक विचार विमर्श करने के लिए प्रेरित करता है।
  • समापन सम्मेलन के समापन पर सभा अध्यक्ष मुख्य बिंदुओं का सशक्तिकरण करके निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है तथा इस संबंध में विशिष्ट सुझाव भी देता है।
  • सम्मेलन के बाद गोष्ठी के पश्चात सभा अध्यक्ष सभा में उपस्थित होने वाले व्यक्तियों तथा अन्य संबंधित व्यक्तियों को निष्कर्ष की एक प्रति भेजता है।

परिसंवाद (Symposium) –

  • विस्तृत अर्थ के रूप में परिसंवाद सामूहिक निर्णय लेने की ऐसी तकनीक है जिससे अधिकांश अथवा सभी लोग उस निर्णय के पक्ष में हो।
  • जब एक से अधिक व्यक्तियों की राय के अनुसार कोई निर्णय लेना होता है तब ऐसे सभी व्यक्तियों को आपस में बैठकर उस विषय पर वार्तालाप करना होता है इस वार्तालाप को परिसंवाद कहा जाता है।
  • परिसंवाद व्यक्तियों के बीच विचारों के आदान-प्रदान और संप्रेषण शैली है।इसके अंतर्गत प्रतिभागियों के एक समूह को एक निश्चित समय अवधि के बीच परिसंवाद के लिए एक विषय दे दिया जाता है प्रत्येक प्रतिभागी के परिसंवाद के दौरान प्रस्तुति के आधार पर उसके संप्रेषण कौशल की जांच की जाती है। असल में इस पर संवाद के माध्यम से कोई व्यक्ति समूह स्थिति में किस प्रकार दूसरों से विचार विनिमय कर पाता है इसकी क्षमता को आंका जाता है।

परिसंवाद के प्रकार

  • पहले प्रकार के ग्रुप में कोऑर्डिनेटर या समूह समन्वयक द्वारा एक विषय विद्यार्थियों को दे दिया जाता है या विद्यार्थियों से ही अपना विषय निर्धारित करने को कहा जाता है तथा एक निर्धारित अवधि तक इस विषय पर चर्चा की जाती है। दोनों ही स्थितियों में अभ्यर्थियों को सामान्यतया वास्तविक परिचर्चा शुरू करने में पहले तैयारी के लिए दो-तीन मिनट का समय दे दिया जाता है शिक्षार्थियों को गोलाई या आधी गोलाई में बिठाया जाता है।
  • दूसरे प्रकार में समूह को एक केस स्टडी की स्थिति छपी हुई दे दी जाती है और अभ्यार्थियों को 3 – 4 मिनट का समय सब पढ़ने और समझने के लिए दे दिया जाता है। इसके पश्चात समूह को दिए हुए पैसे यह केस स्टडी के आधार पर प्रश्नों पर चर्चा करनी पड़ती है। यहां पुनः छात्र-छात्राओं के समूह को विषय पर चर्चा करने के लिए लगभग 20 मिनट का समय दिया जाता है।
  • केस स्टडी तथ्यों और चित्रों से संगीत होती है अतः इस प्रकार की सामूहिक परिचर्चा में समन्वयक आवेदन आवेदकों की संप्रेषण कला के साथ-साथ विषय की गई खेलता भी जांच कर लेते हैं।
  • आकलन –  विद्यार्थियों के परफॉर्मेंस का आकलन परिसंवाद के समन्वयक द्वारा किया जाता है। समेत लगभग 3 समन्वयक होते हैं तीन विभिन्न स्थानों पर बैठे होते हैं इनमें से प्रत्येक अपने दृष्टिकोण से अभ्यर्थियों को देखता रहता है उनका आकलन करता है। यह समन्वयक राय वरिष्ठ तथा अनुभवी होते हैं माननीय प्रबंधन में उनका पर्याप्त अनुभव रहता है और इसलिए वे आसानी से प्रतिभागियों की परीक्षा कर उनका आकलन कर लेते हैं।

परिसंवाद में श्रेष्ठता का आकलन निम्न बिंदुओं को देखकर किया जाता है

  1. अंग्रेजी या हिंदी में बोलने की वाकपटुता
  2. आधारभूत
  3. दूसरों को अपने विचारों से सहमत करने की क्षमता
  4. शारीरिक हाव-भाव
  5. विचारों की परिपक्वता

आदर्श परिसंवाद

आदर्श परिसंवाद में प्रतिभागी मुद्दे पर चर्चा बहुत ही नजरों से मौलिक अवधारणाओं के साथ करता है परिचर्चा में हर एक बिंदु पर ध्यान गहराई से दिया जाता है और समूह को अपने विचारों के प्रति सहमति किया जाता है।